Saturday, March 20, 2021

कोशिश

मैं कोशिश करके थोड़ा
मुस्कुरा क्या दिया
ज़िंदगी ये समझी मुझको
उस से शिकायत नहीं

मैं रूठ जाऊँ उस से
और कुछ कहूँ ही नहीं
पर बात को बढ़ाना
मेरी ये आदत नहीं

करूँ ज़िक्र औरों से मैं
या अपना दर्द बाँटूँ
इल्ज़ाम वक्त को दूँ
इसकी इजाज़त नहीं

नाज़ुक से हैं ये धागे
सुलझाने से भी टूटें
उलझा ही रहने दो फिर
ऐसी भी आफ़त नहीं

- मनस्वी
20 March 2021

Sunday, October 11, 2020

दिल आज फिर... ख़ाली है

तस्वीरेंचिट्ठियाँ और रसीदें

लिफ़ाफ़ों में सम्हाली हैं

यादों की अलमारी फिर एक बार

क़रीने से सजा ली है

दिल आज फिर... ख़ाली है

 

कुछ सपनों की बातें करती

पर्चियाँ भी बरामद हुई

भूले बिसरे वादों का

ज़िक्र छिड़ाखुशामद हुई

मोड़ के फिर वो पर्चियाँ सारी

किताबों में छुपा ली है

दिल आज फिर... ख़ाली है

 

कितना चल के आए हैं

कितना और जाना है

कितना याद रखना है

और किस किस को भुलाना है

तय किया और ढेर लगाया

आग भी जला ली है

दिल आज फिर... ख़ाली है

 

मनस्वी

११/१०/२०२०

 

Sunday, June 16, 2019

आषाढ़

झीनी सी बूंदों में
भीनी सी खुशबू है
खुशियों की बाढ़ है
आया आषाढ़ है


घुंघरू सी छम छम है
तेज़ है, मद्धम है
चढ़ाव है, उतार है
आया आषाढ़ है


गुस्सा है, प्यार है
ढेर ढेर दुलार है
ज़िद है और लाड़ है
आया आषाढ़ है


इसकी मनमानी में
थोड़ी शैतानी है
थोडा जुगाड़ है
आया आषाढ़ है


१५ जून २०१५

Monday, September 24, 2018

आने जाने की टिकट

आने जाने की टिकट
और दो दिन का ख़र्चा
होटेल की बुकिंग
और थोड़ा ख़रीदारी का बजट
इतना ही लेकर चला था घर से

पर वो काँक्रीट का जंगल जादुई था
वहाँ जाकर वापस आने का
मन ही नहीं हुआ
ऊँची इमारतों ने पहरेदारी की
टार की सड़कें बेड़ियाँ बन गयी
और देखते देखते मैं
सैलानी से सिटिज़ेन बन गया
भीड़ में गुम
भीड़ का हिस्सा

घर की याद भी नहीं आती
अब तो याद भी नहीं कि
घर था कैसा?
बस वो वापसी की टिकट
कभी कभी उस शहर का नाम
याद दिला जाती है,
जहाँ कुछ छोड़ के आया था

शायद अपना वजूद...
शायद अपनी पहचान...

#manasvi
31st October 2017

कुछ बेबाक़ी बातों में

कुछ बेबाक़ी बातों में
कुछ जागी सी रातों में
कुछ सच्चे जज़्बातों में
मैं अभी भी हूँ कहीं

कुछ बचकाने खेलों में
कुछ पानी के रेलों में
धागों से लटकी बेलों में
मैं अभी भी हूँ कहीं

मैं फिसला लेकिन गिरा नहीं
बेदम हुआ पर मरा नहीं
मैं गुम हूँ पर लापता नहीं
मैं अभी भी हूँ कहीं

- Manasvi
28th May 2018

Friday, September 21, 2018

बात अधूरी रहने दो ना

बात अधूरी रहने दो ना
कुछ आँखों से कहने दो ना

बहुत बरस से रुका हुआ है
पलकों में जो छुपा हुआ है
उस आँसू को बहने दो ना
बात अधूरी रहने दो ना

हमने ज़ख़्म पुराने देखे
दर्द खड़े सिरहाने देखे
चोट नई भी सहने दो ना
बात अधूरी रहने दो ना

पल गुज़रेगा हम से हो के
हम क्यों इस लम्हे को रोकें
महल आस का ढहने दो ना
बात अधूरी रहने दो ना

मनस्वी
२१ सितम्बर २०१८

Sunday, April 1, 2018

कुछ नया नया

कुछ नया नया
कुछ सुना सुना
इक गीत लबों पर आया था
कुछ बुझी बुझी
कुछ जली जली
यादों ने पल महकाया था

दो नाम जुड़े थे उस पल से
और आज सिले थे उस कल से
हम बुनते बैठे लमहों को
और कसते बैठे धागों को
कुछ रंगीला
कुछ बेरंगी
आँचल तुमको ओढ़ाया था

फिर शाम ढली फिर सुबह हुई
ज्यों दिन और रात में सुलह हुई
तुम जाते जाते रुकी ज़रा
मेरे चेहरे पर झुकी ज़रा
कुछ कहा नहीं
पर लगा मुझे
बस नाम मेरा दोहराया था
- Manasvi
19 March 2018