रोक लूं तो शायद रुक भी जाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
यूँ तो आहटें तुम्हारी
हमने बहुत सम्हाली हैं
गुजरें कल की कितनी उलझन
आते कल पे टाली हैं.
कभी तो आके तुम इन्हें सुलझाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
फिर फिर आँखों में उठता है
सपना जाना पहचाना सा
फिर भी आज तुम्हारा क्यों है
मेरे कल से अनजाना सा
बैठ करीब ये भेद हमें समझाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
मैं हाथों की छाँव बना कर
दिन दिन भर तुमको देखूँगा
यादों का अलाव जला कर
बीते लम्हों को सेंकूंगा
जानता हूँ तुम ये आग बुझाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
मनस्वी
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
यूँ तो आहटें तुम्हारी
हमने बहुत सम्हाली हैं
गुजरें कल की कितनी उलझन
आते कल पे टाली हैं.
कभी तो आके तुम इन्हें सुलझाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
फिर फिर आँखों में उठता है
सपना जाना पहचाना सा
फिर भी आज तुम्हारा क्यों है
मेरे कल से अनजाना सा
बैठ करीब ये भेद हमें समझाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
मैं हाथों की छाँव बना कर
दिन दिन भर तुमको देखूँगा
यादों का अलाव जला कर
बीते लम्हों को सेंकूंगा
जानता हूँ तुम ये आग बुझाओगे
अबके बार तुमको जाने नहीं देंगे...
मनस्वी