Sunday, May 25, 2014

चलते चले

चलते चले जिन रास्तों पे
बिखरे फिरे जिन मोड़ों पे
आज उन राहों पे कोई
हमसफ़र दिखता नहीं।

कल ही की तो बात थी
सुबहा की गर्म चाय की
चुस्कियों में थे ठहाके
इक जोश था इक आग थी
आज हैं बस सर्द आहें
पहचान है, रिश्ता नहीं।

मैं सफ़र में था मुझे
कोई साथ है एहसास था
सरगोशियाँ बराबर रही
जो कुछ भी था वो ख़ास था
बादल अभी भी हैं वही
पर प्यार बरसता नहीं।

Tuesday, May 13, 2014

कुछ पल

कुछ पल यूँ ही बीत जाते हैं,
किसी इन्साफ की दरकार नहीं करते
किसी फैसले पर मजबूर नहीं करते
कुछ पल यूँ ही बीत जाते हैं...

फिर भी वो पल
जिंदगी भर याद आते हैं.
जताते हैं उस नाइंसाफी को, जो हुई
बताते हैं वो फैसले जो नहीं लिए
ठहर जाते तो शायद घायल कर देते...

कुछ पल बस गुज़र जाते हैं
सवाल पूछ कर, जवाब सुने बगैर
ज्यादा सोचने पर मजबूर नहीं करते
कुछ पल बस...
गुज़र जाते हैं...

काश...

काश तुम्हे न चाह पाना भी 
इतना ही आसान होता...

काश आँखें बंद करते ही तुम कहीं खो जाती
ना कोई नामोनिशान होता...

काश तुम्हारी यादों पर पहरा लग पाता
दिल दर्द से अनजान होता...

काश तुम्हारे ख़्वाबों के सितारे ना होते
साफ़ मेरी नींदों का आसमान होता...

फिर कभी

फिर कभी बिखरा दिखूं तो मुझको सहेजना
फिर कभी बहका दिखू तो मुझको सम्हालना

फिर कभी तो धूप कड़ी तो साया कर देना
फिर कभी हो रात घनी तो चाँद टाँकना

फिर कभी चुप सा लगूं, दो बोल बोलना
फिर कभी सहमा दिखूं तो हाथ थामना

बस इतना ही कहना है, ख्वाहिश समझो या इल्तज़ा
अब ये तुम पर है देखो, मानना न मानना

Saturday, May 10, 2014

लफ्ज़

सब कुछ अच्छा ही तो था
शामें थी, तुम्हारे संग
बातें थी, कभी न ख़त्म होने वाली
ज़िक्र था, शायरों का, फलसफों का.

फिर सब बिगड़ क्यों गया?
ऐसे जैसे धूल की आंधी

स्याह कर गयी हो सिन्दूरी शाम को
बातों में कुछ कहने को ना रहा
ज़िक्र सारे लगने लगे बहाने
साथ के पलों को समेटे रखने के.

बस इतना ही तो कहा था मैंने
कि तुमसे प्यार हो चला है...

मैं वापस ले लूं अपने ये लफ्ज़
तो क्या हो जाएगा सब पहले सा?

क्या लौट आएगा शाम का वो रंग?
क्या शुरू हो जाएँगी वो बातें?
और ज़िक्र सारे बोझ लगना बंद हो जायेंगे?

अगर नहीं तो रहने दो वो लफ्ज़
वहीँ उसी मोड़ पर...
कभी गुज़रो दोबारा वहाँ से
तो उठा लेना उन्हें.
कुछ फूल मुरझाने के बाद भी
महका करते हैं।

Saturday, May 3, 2014

बस थोड़ी देर

बस थोड़ी देर
यूँ ही खामोश खड़े रहो।
कुछ कहना नहीं
बस देखते रहो मुझे
किसी अजनबी की तरह।

तुम्हे हक़ है वो सोचने का
जो तुमने सोचा है।
मुझे कोई सफाई नहीं देनी
हालाँकि, मौका है।
तुमसे मुझसे हो कर
साँसों को गुजरने दो।
कुछ कहना नहीं
बस देखते रहो मुझे
किसी अजनबी की तरह।

मैं इस पल को कैद करके
कभी फुर्सत में जियूँगा।
तुम्हारे नाम का प्याला भी
मैं खुद ही पियूँगा।
फिलहाल दरमियाँ इन
लम्हों को बरसने दो।
कुछ कहना नहीं
बस देखते रहो मुझे
किसी अजनबी की तरह।