Thursday, September 18, 2014

साँझ

साँझ की नहीं चाह मुझको दोपहर दे दो
बाँट दो अहसान सारे, मुझको कहर दे दो

दो घड़ी मुझको मेरे होने का यकीं आये
साथ ज़ख्मों के दवाओं का असर दे दो

मैं चलूँ इतना कि थक कर बैठना पड़े
रुकने की इतनी वजह मिले अगर, दे दो

लौट कर आना पड़े दोराहों पे बार बार
जो कहीं जाती ना हो, ऐसी डगर दे दो

Friday, September 12, 2014

पुराना एल्बम

आज मैं फिर एक पुराने एल्बम से गुज़रा
आज मैने भुलाए से कुछ पलों को जी देखा

रोक कर देखा सरकती वक़्त की सुइयों को भी
और फिर भी दो दफा उस घड़ी को सही देखा

चेहरों में तस्वीरों के मुस्कान बहुत सी पायी
पर उन माथों पर ठहरी शिकन को नहीं देखा

जब किसी अनजानी सी हँसी पर नज़र ठिठकी
बरसों बाद दिल को कहीं और होश कहीं देखा

Thursday, September 11, 2014

हम दोनों

हम दोनों कितनी ही देर,
अपने अपने दायरे में क़ैद,
बैठे रहे एक दूसरे के करीब,
मगर अजनबी से

बिखरे हुए पलों में से
चुनते रहे बस
एक दूसरे की गलतियां.
बुनते रहे शिकायतें
जो थी जिंदगी से.

मिल जाती थी नज़रें कभी कभी
छेड़ जाती थी होंठों पे मुस्कान हलकी
पर माथे की शिकन कह जाती थी
जो भूली सी चोटें थी गुज़रे कल की.

ये सफर शायद यूँ ही चले,
मंजिल... मिले ना मिले...
पर दायरे यही रहेंगे...
फासले यही रहेंगे...

जान पहचान होगी भी,
तो बस खुद की बेबसी से...