Tuesday, August 18, 2015

याद रह जाता है

सोच समझ कर बैठ अकेले
मन हर बात को बिसराता है।
जो भुलाते नहीं बनता
वो याद रह जाता है।

धुँधली तस्वीरों की ज़बानी
सुनते रहता है कहानियाँ
भरते रहता है खांचों में
टूटे सपनों की किर्चियाँ
अक्सर पन्ने का फटा सिरा
किस्सा कोई कह जाता है
जो भुलाते नहीं बनता
वो याद रह जाता है।

कभी मूँद आँखें लेट कर
पलकों में पल भर लेता है
जो हो सकता था, हुआ नहीं पर
उसको अपना कर लेता है
यादों पे पहरा नहीं होता
दरिया है, बह जाता है
जो भुलाते नहीं बनता
वो याद रह जाता है।

Wednesday, August 12, 2015

गुमशुदा

ग़मों से, ख़ुशी से
जुदा हो जाएँ
चलो आज हम
गुमशुदा हो जाएँ

चले जाएँ राहों को अपना बनाते
सपने जला के धुएँ में उड़ाते
किसी के लिए इंसान रहें तो
किसी के लिए हम
खुदा हो जाएँ
चलो आज हम
गुमशुदा हो जाएँ

किसी क़ैद से छूट कर भागते हैं
ख्वाबों में ही सोते और जागते हैं
इसी रात में सिलसिले ऐसे हों कि
सफर नींदों का
जाँविदा हो जाएँ
चलो आज हम
गुमशुदा हो जाएँ।

Manasvi
11th August 2015

एक काम ज़रूरी

एक काम ज़रूरी बहुत समय से, कल पर टाला हुआ है…
कांच का इक सपना है,आँखों में पाला हुआ है.

डर जाता है साँसों से, धड़कन से घबराता है,
पलकों की परछाई से चेहरा काला हुआ है…

ज़ख्मों का कोई ज़िक्र नही, चोटों की कोई बात नहीं
खुशियों का इक चोगा है, सीने पे डाला हुआ है.

मेरे सच की मुझे सज़ा क्या देंगे दुनिया वाले,
मेरे चुप की सज़ा है कि होठों पे छाला हुआ है…