Monday, November 14, 2016

माना मैं भूल चला था लेकिन

माना मैं भूल चला था लेकिन
तुम तो याद दिलाते
आँखों के दरवाज़े बन्द मिले थे
तो दिल से चले आते

तुम्हीं बताते कितना मुश्किल
मुझ बिन जीना हो चला
मेरे साथ के बिन तुमसे अब
ना जीना जीने से भला
मैं कहता तुम ना कहते पर
इशारों से ही बुलाते
आँखों के दरवाज़े बन्द मिले थे
तो दिल से चले आते

मैं क्यों मान के बैठा हूँ कि
तुम मन की मन में रखोगे
जो मैं चुप बैठा तो तुम भी
मुझसे दिल की ना कहोगे
दस्तूर ये है कि मैं कहूँ तो
तुम रिवाज झुठलाते
आँखों के दरवाज़े बन्द मिले थे
तो दिल से चले आते
- 16 July 2016

मैं बहुत देर तक

मैं बहुत देर तक
खड़ा रहा उसी जगह
देखता रहा तुम्हें
जाते हुए
जब तक यक़ीन नहीं हो गया
कि तुम सच में
दूर हो गयी हो उतनी
कि आवाज़ नहीं पहुँच सकती
और नज़र में धूल के ग़ुबार
धुँधला करते गए
जो कुछ भी दिख रहा था

मैं रोज़ आता रहा वहाँ
ये देखने कि तुम लौटी हो शायद
नया शहर शायद रास ना आया हो तुम्हें
पर ख़ाली थी राहें और दूर दूर तक
कोई निशान नहीं था
तुम्हारे लौटने का

और फिर एक दिन तुम्हें देखा
हँसी का एक सुर्ख़ रंग पहने
चेहरे पर ख़ुशी की लाली सजाए
जैसे तुमसे कुछ बिछड़ा ही नहीं
जैसे तुमने कुछ खोया ही नहीं
तुम लौटी थी उसी शहर
पर किसी नए रास्ते से

- १ सितम्बर २०१६

मैंने और तुमने...

मैंने खामोशी से लिख के
कोरे पन्ने भेजे थे
तुमने बोलों की स्याही से
संशोधन कर डाले हैं

मैंने बहुत करीने से
रात की चादर मोड़ी थी
तुमने झाड़ के तारे सारे
तितर बितर कर डाले हैं

मैंने धूप के टुकड़ों से
अंधेरो को सजाया था
तुमने रोशनदानो के
पल्ले बंद कर डाले हैं

पर फिर भी रिश्ता है तुमसे
शिकवों के रंगों से रंगा
तुमसे मेरी तन्हाई में
नज्मों के ये उजाले हैं.

- 14th November 2016