Wednesday, January 18, 2017

मुझको गलत कहो

मुझको गलत कहो,
मुझे टोको, मुझ पर
कोई इलज़ाम रख दो
मैं अपनी राह चलता हूँ
खुदगर्ज़ मेरा नाम रख दो

मेरे कौनसे आंसू पोछने आओगे?
मेरे कौनसे गम तुम अपनाओगे?
मेरे किस चोट का दर्द
तुम महसूस करोगे?
बस इतना बता दो फिर जो भी
मेरा अंजाम रख दो
मैं अपनी राह चलता हूँ
खुदगर्ज़ मेरा नाम रख दो

बोलो कहाँ थे तुम जब थक कर
मैं छाले सुखाने बैठा था?
आँख पे हाथ रखे हुए
खुद अपने सिरहाने बैठा था
तब मैं ही था, मेरे लिए
मैने ही मेरा साथ दिया
फिर भी है कसूर मेरा, तो मुझ पर
सलीब सरे-आम रख दो
मैं अपनी राह चलता हूँ
खुदगर्ज़ मेरा नाम रख दो
-Manasvi
18 Jan 2017


वो क्या स्वाद था उस पल का

वो क्या स्वाद था उस पल का
कुछ याद नहीं आता

एक हल्का सा कड़वापन था...
जैसे चीनी डाली हो पर मिलाई ना हो
जो ज़ुबान पर टिका रहता है
बहुत देर तक

या शायद कुछ तीखापन था...
इक ठाँस सी उठी थी
आँखें मिचिया के बन्द की थी
बहुत देर तक चुभन महसूस हुई थी

या शायद कुछ स्वाद था ही नहीं
जैसे फीका सा बिना नमक
पर फिर भी कोशिश होती हैं
उस पल को फिर से जीने की...

बस एक बार वो स्वाद याद आ जाए
तो शायद बनाने का नुस्ख़ा भी सूझ जाए...

मनस्वी 30-12-2016

शाम यूँ ही गुज़र जाती हुई

शाम यूँ ही गुज़र जाती हुई
अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी याद ना आए
थोड़ी उदासी ना छाए
तो साँस नहीं चलती

मैं जब तक तुम्हारे नाम के
कुछ जाम ना उठा लूँ
पलकों पे चंद ख़्वाब के
चिराग़ ना जला लूँ
तो शब नहीं जलती

बहती है किसी छोर से
थमती नहीं आहें
महसूस तुम्हें करती हैं
अब भी मेरी बाहें
हर पल है कमी खलती

तन्हाई है अपनी
महफ़िलें पराई हैं
यादों के साथ कितनी
शामें बिताई हैं
बस रात नहीं ढलती
-Manasvi 6th Jan 2017