सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।
वो खिड़की के किवाड़ अब उस तरह
सुबह सुबह नहीं खुलते।
अब दबे पाँव सूरज सलाखों के
बीच से नहीं आ जाता।
अब वहाँ अलसाई सी
गुनगुनाहट सुनाई नहीं देती।
सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।
बहुत दिनों से वो आँगन
भीगा नहीं है।
बिखरा था जो वो बुहारा नहीं है।
सोचा है जाऊंगा जब भी वहाँ
देख आऊंगा कुछ छूटा तो नहीं है।
पर चाह कर भी वहाँ जाने की
हिम्मत नहीं होती।
क्योंकि
सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।
वो खिड़की के किवाड़ अब उस तरह
सुबह सुबह नहीं खुलते।
अब दबे पाँव सूरज सलाखों के
बीच से नहीं आ जाता।
अब वहाँ अलसाई सी
गुनगुनाहट सुनाई नहीं देती।
सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।
बहुत दिनों से वो आँगन
भीगा नहीं है।
बिखरा था जो वो बुहारा नहीं है।
सोचा है जाऊंगा जब भी वहाँ
देख आऊंगा कुछ छूटा तो नहीं है।
पर चाह कर भी वहाँ जाने की
हिम्मत नहीं होती।
क्योंकि
सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।