Wednesday, February 18, 2015

सुना है

सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।

वो खिड़की के किवाड़ अब उस तरह
सुबह सुबह नहीं खुलते।
अब दबे पाँव सूरज सलाखों के
बीच से नहीं आ जाता।
अब वहाँ अलसाई सी
गुनगुनाहट सुनाई नहीं देती।
सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।

बहुत दिनों से वो आँगन
भीगा नहीं है।
बिखरा था जो वो बुहारा नहीं है।
सोचा है जाऊंगा जब भी वहाँ
देख आऊंगा कुछ छूटा तो नहीं है।
पर चाह कर भी वहाँ जाने की
हिम्मत नहीं होती।
क्योंकि

सुना है अब तुम वहाँ नहीं रहती।

Wednesday, February 4, 2015

क्या होगा?

मत कहो मुझे इस कहानी का अंजाम क्या होगा?
कल सुबह खिलेगी कैसे और कल शाम क्या होगा?

मुझे खरीदने कितने लोग खड़े होंगे मेरे दर पर?
बिकने वाले मेरे ख़्वाबों का दाम क्या होगा?

मेरी नई पहचान मुझसे कितनी अनजानी होगी?
आईने में नज़र आने वाले का नाम क्या होगा?

कलम मेरी मुझसे कितने दिन रूठी और रहेगी?
उसे मनाने के सिवा मेरा और काम क्या होगा?