Just two lines had come to my mind and I messaged it to Lavi. Within five minutes, in successive three messages, she completed the poem.
पहले से आशनाई होगी
जो ज़िन्दगी तुम्हे देख के
मुस्कुराई होगी
तुम्हारे चिलमन में
दिन का बसेरा होगा
तुम्हारी खुशबू ने
रात महकाई होगी
तुम्हारी उंगलियों में
कुछ तो कशिश होगी
धड़कनें मेरी जो
थरथराई होंगी
बातों में मयखाने, साकिये का ज़िक्र
या फिर नीयत मेरी
लड़खड़ाई होगी
आज फिर जो दिल में
तूफ़ान उमड़ा है
उससे बेपरवाह रहो
तो अच्छा है
क्या पता इस दिन के बाद काफ़िर
दिल में फिर शब-ए-तन्हाई होगी
हिचकियों का यूं आना
शायद दिल का बहलावा हो
शायद बारिश की बूंदों ने
फिर उसे मेरी याद दिलाई होगी.
Friday, September 21, 2007
Monday, September 17, 2007
Kuchh Zaahir...
कुछ ज़ाहिर कुछ धुंधला सा
कुछ वाकिफ़ कुछ अन्जाना
इक पल है तेरी यादों का
जिससे है मेरा याराना
अकसर आया करता है
तेरे जाने के एक दम बाद
मेरा हमप्याला होता है
करता है बस ये फ़रियाद
यार मेरी आदत ना बन
मिलना पड़ेगा रोज़ाना
इक पल है तेरी यादों का
जिससे है मेरा याराना
जाने तुझसे क्या डर है
मिलने से कतराता है
सुन कर आहट तेरे कदमों की
अन्धेरों में छुप जाता है
चुनता रहता है पास खड़ा
तेरी बातों का नज़राना
इक पल है तेरी यादों का
जिससे है मेरा याराना
कुछ वाकिफ़ कुछ अन्जाना
इक पल है तेरी यादों का
जिससे है मेरा याराना
अकसर आया करता है
तेरे जाने के एक दम बाद
मेरा हमप्याला होता है
करता है बस ये फ़रियाद
यार मेरी आदत ना बन
मिलना पड़ेगा रोज़ाना
इक पल है तेरी यादों का
जिससे है मेरा याराना
जाने तुझसे क्या डर है
मिलने से कतराता है
सुन कर आहट तेरे कदमों की
अन्धेरों में छुप जाता है
चुनता रहता है पास खड़ा
तेरी बातों का नज़राना
इक पल है तेरी यादों का
जिससे है मेरा याराना
Saturday, September 15, 2007
Phir Dekhenge...
कुछ गुनगुने अहसास
मेरी साँसों की आँच में तप जाने दो
फिर देखेंगे
खुशबू में बसे ख़्वाब
मेरी पलकों के हिजाब में छिप जाने दो
फिर देखेंगे
पहले यकीं तो कर लूं, ऐसा भी कुछ हुआ है.
है खेल हवाओं का, या सच में तुमने छुआ है.
फ़िलहाल तो आँखों में सर्द आहों का धुंआ है.
हाथों का थोड़ा ताप
आँखों पर चुपचाप से मल जाने दो
फिर देखेंगे
ठहरी हुई यहीं पर, है कब से समय की कश्ती.
तुम तक पहुँच भी जाते, लहरों पर ग़र ये बहती.
चल चल कर चाहे रुकती, रुक रुक कर चाहे चलती.
फिर मोड़ हैं वही
बातें हैं अनकही, बस कह जाने दो
फिर देखेंगे
© S. Manasvi
मेरी साँसों की आँच में तप जाने दो
फिर देखेंगे
खुशबू में बसे ख़्वाब
मेरी पलकों के हिजाब में छिप जाने दो
फिर देखेंगे
पहले यकीं तो कर लूं, ऐसा भी कुछ हुआ है.
है खेल हवाओं का, या सच में तुमने छुआ है.
फ़िलहाल तो आँखों में सर्द आहों का धुंआ है.
हाथों का थोड़ा ताप
आँखों पर चुपचाप से मल जाने दो
फिर देखेंगे
ठहरी हुई यहीं पर, है कब से समय की कश्ती.
तुम तक पहुँच भी जाते, लहरों पर ग़र ये बहती.
चल चल कर चाहे रुकती, रुक रुक कर चाहे चलती.
फिर मोड़ हैं वही
बातें हैं अनकही, बस कह जाने दो
फिर देखेंगे
© S. Manasvi
Humse Poochho
हमसे पूछो हमने इस गर्मी में जल कर देखा है
धूप से की दोस्ती तो छाँव को शिकवा हुआ
पड़ गये जो पाँव में छाले अगर तो क्या हुआ
आँच को अपनी हथेली पर मसल कर देखा है
हमसे पूछो हमने इस गर्मी में जल कर देखा है
पेड़ से छनती हुई किरणों से खेल खेला है
पीठ पर लादे हुए हमने अगन को झेला है
ओस में चिन्गारियों को भी बदल कर देखा है
हमसे पूछो हमने इस गर्मी में जल कर देखा है
धूप से की दोस्ती तो छाँव को शिकवा हुआ
पड़ गये जो पाँव में छाले अगर तो क्या हुआ
आँच को अपनी हथेली पर मसल कर देखा है
हमसे पूछो हमने इस गर्मी में जल कर देखा है
पेड़ से छनती हुई किरणों से खेल खेला है
पीठ पर लादे हुए हमने अगन को झेला है
ओस में चिन्गारियों को भी बदल कर देखा है
हमसे पूछो हमने इस गर्मी में जल कर देखा है
Subscribe to:
Posts (Atom)