Saturday, July 19, 2014

भीगा भीगा लम्हा

भीगा भीगा लम्हा मुझसे इतना कहने आया था,
बूंदों का आँचल यूँ उसके चेहरे से टकराया था.
मदहोशी के आलम में वो होश की बातें करता था
थोडा सोचा समझा सा, वो थोडा सा बौराया था.

कुछ यादें थी जेब में उसके, ठंडी सी, कुछ गुनगुनी
कुछ भूली सी, बिसरी सी, कुछ जैसे हो अनसुनी.
फिर भी साँसों में अनजानी खुशबु जैसे बिखर गयी
जब अपने प्याले से उसने मेरा प्याला टकराया था

भूल के बैठा अपनी सुध वो, कहना था कुछ खास नहीं
ठहरा पल खो जाता है, ये उसको था अहसास नहीं
जाने किस पल खो गया वो पल बड़ा ही प्यारा था.
जिसकी याद में दिल भरा, आँखों से छलक आया था.

Sunday, July 13, 2014

जीवन

मन कहे जिस छंद में
मन हँसे जिस ताल में
उस में धुन पिरो पाऊं तो
जीवन सुर में बीतेगा

मन लिखे जिस भाषा में
मन गढ़े जो कहानियाँ
उन पन्नों को पढ़ पाऊं तो
जीवन का सच समझेगा

मन रोपे जो क्यारियाँ
मन बोये जिन फूलों को
उस उपवन को सींचूं तो
जीवन हर पल महकेगा

8th july 2014