Sunday, November 16, 2014

तुम्हारी तस्वीर

तुम्हारी तस्वीर बनाते बनाते मैं रुक गया
आँखें बनाता था पर चाहता था
कि तस्वीर मेरी तरफ देखती

जाने क्यों तुम्हारी आँखें बार बार
मुझसे परे, दूर कहीं जाकर टिक जाती थी

सारी रात यूँ ही बीत गई
तुम उधर कैनवस पर
कहीं दूर देखती हुई...
मैं इधर पास में
बस तुम्हे देखता हुआ.

सुबह देखा तुम कैनवस पर नहीं थी.
शायद चली गई थीं.
वहीँ... जहां देख रही थीं.

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