एक काम ज़रूरी बहुत समय से, कल पर टाला हुआ है…
कांच का इक सपना है,आँखों में पाला हुआ है.
डर जाता है साँसों से, धड़कन से घबराता है,
पलकों की परछाई से चेहरा काला हुआ है…
ज़ख्मों का कोई ज़िक्र नही, चोटों की कोई बात नहीं
खुशियों का इक चोगा है, सीने पे डाला हुआ है.
मेरे सच की मुझे सज़ा क्या देंगे दुनिया वाले,
मेरे चुप की सज़ा है कि होठों पे छाला हुआ है…
कांच का इक सपना है,आँखों में पाला हुआ है.
डर जाता है साँसों से, धड़कन से घबराता है,
पलकों की परछाई से चेहरा काला हुआ है…
ज़ख्मों का कोई ज़िक्र नही, चोटों की कोई बात नहीं
खुशियों का इक चोगा है, सीने पे डाला हुआ है.
मेरे सच की मुझे सज़ा क्या देंगे दुनिया वाले,
मेरे चुप की सज़ा है कि होठों पे छाला हुआ है…
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