मन करता है रोक लूँ बढ़ के
इस जाती हुई शाम को
और पूरा हो जाने दूं
तुम्हारा वादा
किसी शाम मिलने आने का
देख लूं ठंडी ओस पहन कर
बह लूं थोड़ा पत्तों से छन कर
छिप जाऊं कभी धूप ओढ़ कर
सो जाऊं कभी छाँव बन कर
पल बीते आने तक तुम्हारे
वक़्त ना आये जाने का
फिर भी जो तुम ना आओ
और फिर बीते इक शाम यूँ ही
फिर लहरों पे बहा दूं मैं
लिख के तुम्हारा नाम यूँ ही
फिर ढूँढूं मैं कोई बहाना
इस दिल को बहलाने का
Manasvi 4th Sept 2015
इस जाती हुई शाम को
और पूरा हो जाने दूं
तुम्हारा वादा
किसी शाम मिलने आने का
देख लूं ठंडी ओस पहन कर
बह लूं थोड़ा पत्तों से छन कर
छिप जाऊं कभी धूप ओढ़ कर
सो जाऊं कभी छाँव बन कर
पल बीते आने तक तुम्हारे
वक़्त ना आये जाने का
फिर भी जो तुम ना आओ
और फिर बीते इक शाम यूँ ही
फिर लहरों पे बहा दूं मैं
लिख के तुम्हारा नाम यूँ ही
फिर ढूँढूं मैं कोई बहाना
इस दिल को बहलाने का
Manasvi 4th Sept 2015
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