Friday, September 18, 2015

तुम और हम

तुम और हम
आधी आधी बाँट लें
अपनी खुशियाँ
अपने ग़म

थोड़ी गर्मी तुम रख लो
थोड़ी सर्दी मुझे दे दो
थोड़े से दिन रात हैं
थोड़े से मौसम
आधी आधी बाँट ले
अपनी खुशियाँ
अपने ग़म

जो लम्हे साथ जिए नहीं
उन पे हक़ दोनों का नहीं
सुलगा लें, साथ बैठें,सेंकें
वो बीता आलम
आधी आधी बाँट ले
अपनी खुशियाँ
अपने ग़म

फिर मुड़ जाएं
अपने अपने रस्ते
कुछ दूर जाके ठिठकें
पोंछ ले आँखें नम
आधी आधी बाँटी हैं
अपनी खुशियाँ
अपने ग़म

मनस्वी
18 सितम्बर 2015

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