Wednesday, January 18, 2017

शाम यूँ ही गुज़र जाती हुई

शाम यूँ ही गुज़र जाती हुई
अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी याद ना आए
थोड़ी उदासी ना छाए
तो साँस नहीं चलती

मैं जब तक तुम्हारे नाम के
कुछ जाम ना उठा लूँ
पलकों पे चंद ख़्वाब के
चिराग़ ना जला लूँ
तो शब नहीं जलती

बहती है किसी छोर से
थमती नहीं आहें
महसूस तुम्हें करती हैं
अब भी मेरी बाहें
हर पल है कमी खलती

तन्हाई है अपनी
महफ़िलें पराई हैं
यादों के साथ कितनी
शामें बिताई हैं
बस रात नहीं ढलती
-Manasvi 6th Jan 2017

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