शाम यूँ ही गुज़र जाती हुई
अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी याद ना आए
थोड़ी उदासी ना छाए
तो साँस नहीं चलती
मैं जब तक तुम्हारे नाम के
कुछ जाम ना उठा लूँ
पलकों पे चंद ख़्वाब के
चिराग़ ना जला लूँ
तो शब नहीं जलती
बहती है किसी छोर से
थमती नहीं आहें
महसूस तुम्हें करती हैं
अब भी मेरी बाहें
हर पल है कमी खलती
तन्हाई है अपनी
महफ़िलें पराई हैं
यादों के साथ कितनी
शामें बिताई हैं
बस रात नहीं ढलती
-Manasvi 6th Jan 2017
अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी याद ना आए
थोड़ी उदासी ना छाए
तो साँस नहीं चलती
मैं जब तक तुम्हारे नाम के
कुछ जाम ना उठा लूँ
पलकों पे चंद ख़्वाब के
चिराग़ ना जला लूँ
तो शब नहीं जलती
बहती है किसी छोर से
थमती नहीं आहें
महसूस तुम्हें करती हैं
अब भी मेरी बाहें
हर पल है कमी खलती
तन्हाई है अपनी
महफ़िलें पराई हैं
यादों के साथ कितनी
शामें बिताई हैं
बस रात नहीं ढलती
-Manasvi 6th Jan 2017
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