Tuesday, November 14, 2017

याद नहीं

तुमसे कितना गहरा था
याराना याद नहीं
क्यों बिछड़ा था तुमसे
वो फ़साना याद नहीं

तुमको मनाने की सारी
कोशिशें याद हैं
तुमसे रूठ जाने का
बहाना याद नहीं

कभी तो हुआ था यूँ भी
गिले गिनाए थे सारे
दिल की बात कहते हुए
हिचकिचाना याद नहीं

रात गुज़ारी थी काँधे पे
सिर रख कर सुबकते हुए
पर गोदी में छुपा के सिर
सो जाना याद नहीं

कुछ तो था जो सही नहीं था
कुछ तो था जो अधूरा था
याद बहुत से पल हैं पर
ज़माना याद नहीं


14 Nov 2017

किसी दिन

किसी दिन
यूँ ही बिन बताए
बिना ख़बर बस आ जाना
दस्तक भी ना देना
एक चाबी तुम्हारे पास भी तो है
तुमने लौटाई कहाँ थी?
बस उस से घर खोल कर आ जाना
मैं तुम्हें देख कर हैरान नहीं होऊँगा
पूछूँगा भी नहीं कि कैसे आना हुआ?
बस अपनी कुर्सी जो बालकनी के
आड़े आती है, उसे हटा दूँगा...
तुम बाल्कनी में लगे मनी प्लांट से
कुछ बातें कर लेना
वो याद करता है तुम्हें
जब तुमने अपना समान समेटा था
उसे वहीं रहने दिया था
वो ग्रिल से उलझ जो गया था
उसने भी हटने की कोशिश नहीं की
सोचता था इसी बहाने तुम मिलने आ जाओगी
बहुत दिन हो गए हैं
उसे अफ़सोस होता है कि
वो क्यों उलझा रहा उन सलाखों से
मेरे साथ रहता है
मुझ सा ही सोचता है
उसे उम्मीद दे जाना
किसी दिन
यूँ ही बिन बताए
बिना ख़बर बस आ जाना

29 October 2017

उस रोज़

उस रोज़ कुछ पल और
तुम ठहर जाते तो
कहानी और होती
शायद...

मैं तुम्हें मना पाता
अपनी बात समझा पाता
शिकायतें मिट जाती
शायद...

जो होना है वो होता
उस मोड़ पर नहीं तो
अगले मोड़ पर बिछड़ते
शायद...

-27 October 2017