किसी दिन
यूँ ही बिन बताए
बिना ख़बर बस आ जाना
दस्तक भी ना देना
एक चाबी तुम्हारे पास भी तो है
तुमने लौटाई कहाँ थी?
बस उस से घर खोल कर आ जाना
मैं तुम्हें देख कर हैरान नहीं होऊँगा
पूछूँगा भी नहीं कि कैसे आना हुआ?
बस अपनी कुर्सी जो बालकनी के
आड़े आती है, उसे हटा दूँगा...
तुम बाल्कनी में लगे मनी प्लांट से
कुछ बातें कर लेना
वो याद करता है तुम्हें
जब तुमने अपना समान समेटा था
उसे वहीं रहने दिया था
वो ग्रिल से उलझ जो गया था
उसने भी हटने की कोशिश नहीं की
सोचता था इसी बहाने तुम मिलने आ जाओगी
बहुत दिन हो गए हैं
उसे अफ़सोस होता है कि
वो क्यों उलझा रहा उन सलाखों से
मेरे साथ रहता है
मुझ सा ही सोचता है
उसे उम्मीद दे जाना
किसी दिन
यूँ ही बिन बताए
बिना ख़बर बस आ जाना
29 October 2017
No comments:
Post a Comment