मुस्कुरा क्या दिया
ज़िंदगी ये समझी मुझको
उस से शिकायत नहीं
मैं रूठ जाऊँ उस से
और कुछ कहूँ ही नहीं
पर बात को बढ़ाना
मेरी ये आदत नहीं
और कुछ कहूँ ही नहीं
पर बात को बढ़ाना
मेरी ये आदत नहीं
करूँ ज़िक्र औरों से मैं
या अपना दर्द बाँटूँ
इल्ज़ाम वक्त को दूँ
इसकी इजाज़त नहीं
या अपना दर्द बाँटूँ
इल्ज़ाम वक्त को दूँ
इसकी इजाज़त नहीं
नाज़ुक से हैं ये धागे
सुलझाने से भी टूटें
उलझा ही रहने दो फिर
ऐसी भी आफ़त नहीं
सुलझाने से भी टूटें
उलझा ही रहने दो फिर
ऐसी भी आफ़त नहीं
- मनस्वी
20 March 2021
20 March 2021
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