फिर कुछ लिखने बैठा हूँ
कुछ ऐसा जो बिक जाए
अपना कोई सपना जो
दूजी आँखों को दिख जाए
जिसके माने समझाने में
लफ्ज़ मेरे कुर्बान ना हों
काफी जिसका ज़िक्र ही हो बस
और कोई पहचान ना हो
मैं बेसुध हूँ कलम को थामे
कागज़ शायद कुछ लिख जाए
कुछ कह डालूँ ऐसा कि
बरसों तक दोहराएँ सब
बोल मेरे पर, गीत सभी का
अपनी धुन में गायें सब
चला चले ख़्वाबों का मेला
इक आये जो इक जाए
- Manasvi
2nd Nov 2015
कुछ ऐसा जो बिक जाए
अपना कोई सपना जो
दूजी आँखों को दिख जाए
जिसके माने समझाने में
लफ्ज़ मेरे कुर्बान ना हों
काफी जिसका ज़िक्र ही हो बस
और कोई पहचान ना हो
मैं बेसुध हूँ कलम को थामे
कागज़ शायद कुछ लिख जाए
कुछ कह डालूँ ऐसा कि
बरसों तक दोहराएँ सब
बोल मेरे पर, गीत सभी का
अपनी धुन में गायें सब
चला चले ख़्वाबों का मेला
इक आये जो इक जाए
- Manasvi
2nd Nov 2015
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