ख्वाबों से यारी हुई तो
नींदे रूठ गयी हैं
पल में सो जाने की आदत
कब की छूट गयी है
पहले नींद नहीं आई
कि कल क्या होगा जाने
फिर सोना चाहा तो
सपने आ बैठे सिरहाने
दबे पाँव आके सच्चाई
उम्मीदें लूट गयी है
पल में सो जाने की आदत
कब की छूट गयी है
पहले रिश्तों फिर किश्तों
की खातिर दौड़े भागे
दिन दिन भर मीलों चले
कितनी रातों जागे
वादे निभाये औरों से
खुद को दी कसमें टूट गयी हैं
पल में सो जाने की आदत
कब की छूट गयी है
Manasvi
25th May 2016