Monday, November 14, 2016

मैं बहुत देर तक

मैं बहुत देर तक
खड़ा रहा उसी जगह
देखता रहा तुम्हें
जाते हुए
जब तक यक़ीन नहीं हो गया
कि तुम सच में
दूर हो गयी हो उतनी
कि आवाज़ नहीं पहुँच सकती
और नज़र में धूल के ग़ुबार
धुँधला करते गए
जो कुछ भी दिख रहा था

मैं रोज़ आता रहा वहाँ
ये देखने कि तुम लौटी हो शायद
नया शहर शायद रास ना आया हो तुम्हें
पर ख़ाली थी राहें और दूर दूर तक
कोई निशान नहीं था
तुम्हारे लौटने का

और फिर एक दिन तुम्हें देखा
हँसी का एक सुर्ख़ रंग पहने
चेहरे पर ख़ुशी की लाली सजाए
जैसे तुमसे कुछ बिछड़ा ही नहीं
जैसे तुमने कुछ खोया ही नहीं
तुम लौटी थी उसी शहर
पर किसी नए रास्ते से

- १ सितम्बर २०१६

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