Monday, November 14, 2016

मैंने और तुमने...

मैंने खामोशी से लिख के
कोरे पन्ने भेजे थे
तुमने बोलों की स्याही से
संशोधन कर डाले हैं

मैंने बहुत करीने से
रात की चादर मोड़ी थी
तुमने झाड़ के तारे सारे
तितर बितर कर डाले हैं

मैंने धूप के टुकड़ों से
अंधेरो को सजाया था
तुमने रोशनदानो के
पल्ले बंद कर डाले हैं

पर फिर भी रिश्ता है तुमसे
शिकवों के रंगों से रंगा
तुमसे मेरी तन्हाई में
नज्मों के ये उजाले हैं.

- 14th November 2016

No comments: