क्यों ना कुछ पल
कुछ ना कहें
बस ख़ामोशी में ढूँढ़े
मन में उमड़ें
कोलाहल की वजहें
यूँ ही मूँद के पलकों को
सपनो को गिरने से रोकें
धड़कन को क़ाबू ना करें
ना थामें, ना टोकें
दिल भर जाने दें थोड़ा
बूँदें बन आँखों से बहे
ख़ुद को समझाने की फ़िज़ूल
कोशिश करना बंद करें
ख़ुद से पहले सुलह करें
ख़ुद को रज़ामंद करें
परत परत खुलती जायें
सुलझती जाएँ सब गिरहें
- 26 September 2017
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