Monday, September 24, 2018

आने जाने की टिकट

आने जाने की टिकट
और दो दिन का ख़र्चा
होटेल की बुकिंग
और थोड़ा ख़रीदारी का बजट
इतना ही लेकर चला था घर से

पर वो काँक्रीट का जंगल जादुई था
वहाँ जाकर वापस आने का
मन ही नहीं हुआ
ऊँची इमारतों ने पहरेदारी की
टार की सड़कें बेड़ियाँ बन गयी
और देखते देखते मैं
सैलानी से सिटिज़ेन बन गया
भीड़ में गुम
भीड़ का हिस्सा

घर की याद भी नहीं आती
अब तो याद भी नहीं कि
घर था कैसा?
बस वो वापसी की टिकट
कभी कभी उस शहर का नाम
याद दिला जाती है,
जहाँ कुछ छोड़ के आया था

शायद अपना वजूद...
शायद अपनी पहचान...

#manasvi
31st October 2017

कुछ बेबाक़ी बातों में

कुछ बेबाक़ी बातों में
कुछ जागी सी रातों में
कुछ सच्चे जज़्बातों में
मैं अभी भी हूँ कहीं

कुछ बचकाने खेलों में
कुछ पानी के रेलों में
धागों से लटकी बेलों में
मैं अभी भी हूँ कहीं

मैं फिसला लेकिन गिरा नहीं
बेदम हुआ पर मरा नहीं
मैं गुम हूँ पर लापता नहीं
मैं अभी भी हूँ कहीं

- Manasvi
28th May 2018

Friday, September 21, 2018

बात अधूरी रहने दो ना

बात अधूरी रहने दो ना
कुछ आँखों से कहने दो ना

बहुत बरस से रुका हुआ है
पलकों में जो छुपा हुआ है
उस आँसू को बहने दो ना
बात अधूरी रहने दो ना

हमने ज़ख़्म पुराने देखे
दर्द खड़े सिरहाने देखे
चोट नई भी सहने दो ना
बात अधूरी रहने दो ना

पल गुज़रेगा हम से हो के
हम क्यों इस लम्हे को रोकें
महल आस का ढहने दो ना
बात अधूरी रहने दो ना

मनस्वी
२१ सितम्बर २०१८