आने जाने की टिकट
और दो दिन का ख़र्चा
होटेल की बुकिंग
और थोड़ा ख़रीदारी का बजट
इतना ही लेकर चला था घर से
पर वो काँक्रीट का जंगल जादुई था
वहाँ जाकर वापस आने का
मन ही नहीं हुआ
ऊँची इमारतों ने पहरेदारी की
टार की सड़कें बेड़ियाँ बन गयी
और देखते देखते मैं
सैलानी से सिटिज़ेन बन गया
भीड़ में गुम
भीड़ का हिस्सा
घर की याद भी नहीं आती
अब तो याद भी नहीं कि
घर था कैसा?
बस वो वापसी की टिकट
कभी कभी उस शहर का नाम
याद दिला जाती है,
जहाँ कुछ छोड़ के आया था
शायद अपना वजूद...
शायद अपनी पहचान...
#manasvi
31st October 2017
और दो दिन का ख़र्चा
होटेल की बुकिंग
और थोड़ा ख़रीदारी का बजट
इतना ही लेकर चला था घर से
पर वो काँक्रीट का जंगल जादुई था
वहाँ जाकर वापस आने का
मन ही नहीं हुआ
ऊँची इमारतों ने पहरेदारी की
टार की सड़कें बेड़ियाँ बन गयी
और देखते देखते मैं
सैलानी से सिटिज़ेन बन गया
भीड़ में गुम
भीड़ का हिस्सा
घर की याद भी नहीं आती
अब तो याद भी नहीं कि
घर था कैसा?
बस वो वापसी की टिकट
कभी कभी उस शहर का नाम
याद दिला जाती है,
जहाँ कुछ छोड़ के आया था
शायद अपना वजूद...
शायद अपनी पहचान...
#manasvi
31st October 2017
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