आदत नहीं कि सोचूँ
यूँ होता तो क्या होता
कुछ बदले से हम होते
कुछ बदला समा होता
कुछ ज़िक्र और होते
कुछ बातें और होती
कुछ जाम और छलकते
कुछ गहरा धुँआ होता
ना सोच के भी कितना
सोचा हुआ है हमने
सोचो कि सोचते क्या
गर सच में सोचा होता
यूँ होता तो क्या होता
कुछ बदले से हम होते
कुछ बदला समा होता
कुछ ज़िक्र और होते
कुछ बातें और होती
कुछ जाम और छलकते
कुछ गहरा धुँआ होता
ना सोच के भी कितना
सोचा हुआ है हमने
सोचो कि सोचते क्या
गर सच में सोचा होता