Thursday, April 24, 2014

झूठे सपने

झूठे सपने चले आये हैं
मेरे सच को झुठलाने।
बहकी बहकी बातें कर के
मेरे मन को भरमाने

सेंध लगा कर चोरी करते
मैंने पकड़ा इनको कई बार
मैंने अनसुनी की बरसो
इनकी जज़बाती दरकार 
फिर भी छुप कर कस जाते हैं
सपने फिकरे मनमाने

कभी बिठाके सामने अपने
मैंने इनको समझाया भी
मैं खुश हूँ अपने सच से
मैंने इनको दिखाया भी
पर अनदेखा मुझको करके
ये लिखते हैं अफ़साने

झूठे सपने चले आये हैं
मेरे सच को झुठलाने।
बहकी बहकी बातें कर के
मेरे मन को भरमाने

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