Thursday, April 24, 2014

नाम वही इक जाना बूझा

नाम वही इक जाना बूझा
बात वही इक देखी भाली
काम वही इक सोचा समझा
रात वही इक गहरी काली

तुम से मुझ तक दूरी इतनी
पहरों, मीलों, सदियों जितनी
उस पर दरवाज़ों पे ताले
खिड़की जो ना खुलने वाली

उस पर बोली भाषा बिरली
कुछ समझे कुछ और ही निकली
आँखों से कहना क्या कहना
पलकों पर पर्दों की जाली

रिश्ते को दिए नाम कई
फिसला रेत के जैसा फिर भी
थोड़ा मुट्ठी में भी समेटा
हाथ रहे खाली के खाली

22nd April 2014

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